कपूर परिवार नेपोटिज्म: कैसे बना बॉलीवुड का दिग्गज नेटवर्क?
क्या आपने कभी सोचा है कि कपूर परिवार इतना बड़ा क्यों है? सिर्फ टैलेंट नहीं, रिश्ते और स्नेह भी इसका बड़ा कारण हैं। इस लेख में हम देखेंगे कि कौन-कौन हैं इस परिवार के प्रमुख, और उनका नेपोटिज्म कैसे काम करता है।
परिवार के प्रमुख सदस्य और उनका योगदान
कपूर परिवार में सबसे पहले याद आता है शहबाज़ कुमार कपूर, जो 1970‑80 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में घुस आए। उनका भाई और साथी बाप्पी धुन्ने ने भी प्रोडक्शन में कदम रखा। इनके बाद रुबी कपूर, श्रद्धा कपूर जैसी नई पीढ़ी के कलाकार आए, जिन्होंने बॉक्सऑफ़िस पर नाम बनाया।
हर नया सदस्य सिर्फ नाम नहीं, बल्कि फाइल्स, कनेक्शन और प्रोजेक्ट्स लाता है। जब रुबी ने ‘मर्यादा’ में काम किया, तो प्रॉड्यूसर कॅडबर्ड ने उनका नाम सुना नहीं तो क्या उन्हें रोल मिलता? यही कारण है कि परिवार के अंदर काम मिलने की संभावना ज्यादा रहती है।
नेपोटिज्म का असर और आलोचना
नेपोटिज्म का फायदा यह है कि नई टैलेंट को जल्दी अपलोड मिलने में मदद मिलती है। लेकिन साथ ही कई लोगों को लगता है कि इससे असमानता बढ़ती है। अगर किसी को बाहर से काम मिलना हो तो उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती है, जबकि परिवार के अंदर के लोगों को आसानी से मौका मिल जाता है।
कभी‑कभी यह बात सुनाई देती है कि कपूर परिवार की फिल्मों में केवल रिश्ते ही नहीं, बल्कि पैसों की भी बड़ी भूमिका है। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर आपने कनेक्शन से सिर्फ बोगसिंग कर रहे होते तो बॉक्सऑफ़िस पर टिक नहीं पाते। दर्शकों की पसंद अंत में ही तय करती है।
तो नेपोटिज्म को लेकर उलझन क्यों? अगर आप सोचते हैं कि यह सिर्फ एक बड़े परिवार की कहानी है, तो आप सही दिशा में हैं। यहाँ तक कि कई छोटे कलाकार भी इस नेटवर्क से जुड़ कर अपना मुकाम बनाते हैं। यही कारण है कि कपूर परिवार इतना बड़ा और प्रभावी बना रहा।
यदि आप बॉलीवुड में काम करना चाहते हैं, तो रिश्ते बनाना भी एक कौशल है। कपूर परिवार की कहानी से सीखें कि कैसे कनेक्शन, मेहनत और टैलेंट का मिलाजुला असर ज़्यादा सफलताएं ला सकता है।
आखिरकार, नेपोटिज्म कोई बुरा शब्द नहीं, बल्कि एक साधन है। इसमें संतुलन बनाकर ही इंडस्ट्री को आगे बढ़ाया जा सकता है। कपूर परिवार ने यह संतुलन बैठाकर कई सालों तक अपना जलवा बनाए रखा है।