नेपोटिज्म क्या है? बॉलीवुड में इसका मतलब क्या है?
जब हम ‘नेपोटिज्म’ सुनते हैं तो अक्सर यह सोचते हैं कि केवल रिश्तों का फायदा है। लेकिन असल में यह एक जटिल प्रक्रिया है जहाँ परिवार, दोस्त या उद्योग के अंदर के लोग नई टैलेंट को मौके दिलाते हैं। बॉलीवुड में इसको लेकर बहस तेज़ रहती है। इसलिए इस लेख में हम नेपोटिज्म के वास्तविक पहलुओं को देखेंगे, फायदे‑नुकसान समझेंगे और कुछ प्रमुख केस भी देखेंगें।
नेपोटिज्म के फायदे और नुकसान
सबसे पहला फायदा यह है कि एक भरोसेमंद लेखक या निर्माता को नया कलाकार मिल जाता है, तो काम जल्दी शुरू हो जाता है। इससे प्रोजेक्ट की लागत कम हो सकती है और टीम में भरोसा बना रहता है। दूसरी ओर, नेपोटिज्म से कई बार टैलेंट को बाहर रख दिया जाता है। कई नवोदित कलाकार बिना किसी कनेक्शन के मुश्किल में पड़ जाते हैं, जबकि उनके पास हुनर हो सकता है। इस असमानता से दर्शकों को भी अक्सर दोहराव वाली फिल्में मिलती हैं, जो बॉक्स ऑफिस पर असर डालती है।
नेपोटिज्म से जुड़े चर्चित मामले
बॉलीवुड में सबसे ज़्यादा चर्चा करवाने वाले केसों में से एक है करण जौहर और सुशांत सिंह राजपूत की कहानी। कई लोग मानते हैं कि करन ने सुशांत की करियर को प्रभावित किया, जबकि कुछ का कहना है कि यह केवल मीडिया में उभरा एक मिथक है। दूसरे उदाहरण में फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के निर्माताओं का परिवारिक जुड़ाव है, जहाँ कई मुख्य कलाकार एक ही परिवार से हैं। ऐसे केस दर्शाते हैं कि नेपोटिज्म केवल एक शब्द नहीं, बल्कि कई फैसलों में छिपा हुआ एक कारक है।
एक और रोचक बात यह है कि नेपोटिज्म अक्सर सोशल मीडिया पर भी दिखता है। जैसे करण जौहर ने ट्विटर पर कई बॉलीवुड सितारों को अनफॉलो किया, जिससे यह सोच बना कि वह नेपोटिज्म को दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह भी एक रणनीति हो सकती है, जहाँ कलाकार अपने ब्रांड को अलग बनाना चाहते हैं।
नेपोटिज्म को पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री में रिश्ते अक्सर काम को आसान बनाते हैं। फिर भी, उद्योग को चाहिए कि वह खुले ऑडिशन, टैलेंट स्काउटिंग और पारदर्शी कास्टिंग प्रैक्टिसेज़ अपनाए। इससे नए चेहरों को मौका मिलेगा और दर्शकों को भी नई ऊर्जा मिलेगी।
यदि आप एक दर्शक हैं तो नेपोटिज्म को पहचानना आसान नहीं है। अक्सर वही फिल्में आती हैं जिनमें कई बड़े नाम होते हैं, पर आप उनके पीछे की कहानी नहीं जानते। इसलिए जब आप कोई नई फ़िल्म देखें, तो स्टार कास्ट से ज़्यादा कहानी और कंटेंट पर ध्यान दें। यही सच में फ़िल्म को बेहतर बनाता है, चाहे वह किसी रिश्ते से हो या नहीं।
अंत में, नेपोटिज्म का असर दो तरफ़ा है। यह कभी‑कभी नए टैलेंट को मंच देता है, लेकिन कई बार पुरानी सिलसिले को बनाये रखता है। इस मुद्दे को समझकर ही हम सच्ची बातों पर चर्चा कर सकते हैं और बॉलीवुड को और बेहतर बना सकते हैं।